Wednesday 23 October 2013

" सखा "

सच्ची मित्रता में
दक्ष वैद्य की सी
निपुणता एवं
सूक्ष्म निरूपणता
तथा माता का सा
धैर्य होता है ...
सच्चे विश्वस्त मित्र
जीवन की अनमोल
औषधि हीं तो हैं
जो अपनी स्नेहिल
छाया में समेटकर
जग-कानन की
भस्मीभूत कर देने वाली
संतप्तता,
वैमनस्यता से
अपने सखा को
निरापद रखते हैं ... !!
© कंचन पाठक.

Friday 18 October 2013

" यह पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा "


यह निर्दोष सारंग
सुधाकर,
शरद पूर्णिमा का ... ...

सबसे उज्ज्वल,
कहीं कोई दाग नहीं ...
शरद पूर्णिमा का चन्द्रमा,
सौंदर्य का भी है प्रतीक ये
रूपसी यामिनी का
चमचमाते सितारों जड़ा,
गहरा नीला आँचल
और
उस पर थिरकता
बड़ा सा चमकता
पूर्ण चन्द्र ....
अमृत वर्षा करता हुआ
पूर्ण चंद्र ...
पूर्ण मन ... !!
© कंचन पाठक.

Thursday 17 October 2013

" मैं जाग रही "


कृष्णपक्ष की,
भयप्रद विभावरी
चहुँओर निःस्तब्ध ..
घनघोर ध्वान्त !
सभी विटप, तरु
सो रहे गहन 
निद्रा में लीन ..
बेसुध विश्रांत !
मैं जाग रही
यादों के संग,
कुछ संस्मरण,
करे चित्त विभ्रांत ... !!
 © कंचन पाठक.

Thursday 10 October 2013

" प्रेम की नगरी - सुन्दर नगरी "


एक बलशाली राजा के
अमर्यादित आचरण ने
एक सरल, स्वाभिमानी
और
विद्वान् ब्राहमण को
कौटिल्य बना दिया.
प्रतिशोध की ज्वाला से
जन्म हुआ
इतिहास के प्रथम
युगनिर्माता, युगपुरुष का.
परिणाम क्या हुआ ?
मगध सम्राट महानंद
से अपमानित होने के बाद
सीधे-साधे चरित्रवान ब्राह्मण
विष्णुगुप्त (चाणक्य)
ने मुरापुत्र चन्द्रगुप्त
को शिष्य बनाया.
दासीपुत्र, कुँवारी माँ का बेटा
चन्द्रगुप्त ...
राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ,
कुशाग्र बुद्धि के अर्थशास्त्री
के मार्गदर्शन में
महानंद को पराजित कर
मगध सम्राट बना.
अपने आचरण से
महानंद स्वयं अपने
और अपने साम्राज्य के
विनाश का कारण बना.
चन्द्रगुप्त महान ने
यूनानी सम्राट
महाबलशाली सिकंदर
तक को परास्त किया.
सेनापति सेल्युकस ने
अपनी बेटी हेलेना से
विवाह की प्रार्थना की.
अजेय अपराजेय
सम्राट चन्द्रगुप्त ...
बिम्बसार -
चक्रवर्ती सम्राट अशोक - 
चन्द्रगुप्त का पोता ...
आधा खून हिन्दुस्तानी
आधा यूनानी ... 
ना जाने कितने युद्ध ...
अनगिनत लाशें बिछीं
खून हीं खून.
अंत क्या हुआ ?
अंततः सम्पूर्ण राजपाट,
ऐश्वर्य छोड़कर
बौद्ध धर्म स्वीकार कर
संन्यासी हो गया.
लड़ाईयां, प्रतिशोध,
हिंसा, युद्ध की ज्वाला ...
अंततः सब कुछ
जलाकर राख कर देती है.
© कंचन पाठक.

Wednesday 2 October 2013

" तुम्हारी दृष्टी "

तुम्हारी दृष्टि
जैसे विद्युत् की कौंध
जो क्षणांश में
अपनी कनक-रेखा से
आकृष्ट कर
मुग्ध कर जाती ...
तुम्हारी दृष्टि
जैसे भैरवी की कोई
ह्रदय-स्पर्शिनी तान
जो मन प्राणों को
उद्वेलित कर
प्रेम-कुसुम महका जाती
सोई पीड़ा जगा जाती 
दृग-बिन्दु छलका जाती..!!!!
© कंचन पाठक.